History of Karanwas

कर्णक्षेत्र कर्णवास :- 
गायन्ति देवाः किलागीतकानिधन्यास्तुते भारतभूमि भागे ।
     स्वर्गा पवार्गा स्पद मार्ग भूते भवन्ति भूयः पुरुषाः सुरत्वात ।
     
देवभूमि  भारत में, प्रभु लीलावतार स्थल उत्तरप्रदेश  में मेरठ मंडल के बुलंदशहर जनपद की डिबाई तहसील में उत्तर रेलवे की बरेली लाइन पर राजघाट नरोरा स्टेशन से ४ किलोमीटर दूर पश्चिम में पुण्य सलिला सुरसरि के पवित्र दक्षिण पार्श्व पर स्थित सिद्ध तीर्थ स्थल कर्णवास है ।  प्रकृति की सुरम्य एकांत गोदासी पवित्र इस तपोभूमि की सिद्धता आज भी सुविस्तृत सघन अम्रइयो के मध्य स्थित आश्रमों के रूम में अक्षुण है । यहाँ पुण्य सलिल गंगा का विस्तार है साथ ही दानवीर कर्ण की आराध्या माँ कल्याणी का मंदिर है । इस तीर्थ की सिद्धमाता के कारण ही यहाँ प्रतिवर्ष उत्तरप्रदेह के अतिरिक्त वड़ोदा, इंदौर, ग्वालियर, उदयपुर, भरतपुर, भुज, गुजरात, मुंबई, कलकत्ता आदि के श्रद्धालु परंपरा से आते है और यहाँ माँ की चमत्कारिक शक्तिमत्ता - सिद्धिमत्ता की जय कार करते है ।

कर्णवास पौराणिक तीर्थ है अनेक ग्रंथो एवं अध्यात्मिल प्रसंगों में इसका उल्लेख मिलता है। भगवान श्री कृष्णा के कुलगुर श्री गंगाचार्य द्वारा लिखित " गर्ग संहिता "  में कर्णवास का उल्लेख मिलता है । गर्ग संहित के अध्याय ४ एवं मथुरा खंड अध्याय २४ में कर्णवास का वर्णन मिलता है ।  

तदनुसार रजा वहुलाश्व को व्रह्म ऋषि नारद जी रामतीर्थ रामघाट का परिचय करते हुए कहते है ।

यत्र रामेण गंगाया कृत्य स्नानं विदेहराट । तत्र तीर्थ महा पुण्यं राम तीर्थ विदुर्बुधाः   


Ganga G karanwas

River Ganga 


Comments

गौरव जी आपने कर्णवास के बारे में जो परिचय दिया है वह वास्तव में गौरवशाली है। कर्णवास इतिहास में गौरवशाली स्थान रखता है।https://namamigangenews.blogspot.com/
Anonymous said…
Kripya dada ji maharaj mandir ke bare mein bhi kuch sanschipt vichar prastut kijiye. Jo ki karnwas mein sthit hai.

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